पुरुष नसबंदी टारगेट को पूरा नहीं करने वाले मल्टी पर्पज वर्कर (एमपीडब्ल्यू) का वेतन राेकने और जबरन रिटायर करने के एक आदेश से मचे हंगामे के बाद सरकार ने इसे वापस ले लिया है। साथ ही आदेश जारी करने वाली राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की डायरेक्टर व आईएएस छवि भारद्वाज को भी पद से हटाते हुए मंत्रालय में ओएसडी पदस्थ कर दिया। छवि ने 11 फरवरी को आदेश जारी किया था, उसके बाद से वह ट्रेनिंग के लिए मसूरी में हैं। इस आदेश में पूर्व में 27 सितंबर 2019, 20 दिसंबर 2019 और 7 जनवरी 2020 को जारी नसबंदी आदेशों का भी जिक्र है, लेकिन शुक्रवार को जब इस पर सियासी बवाल हुआ तो छुट्टी के दिन ऑफिस खुलवाकर नसबंदी का आदेश वापस लिया गया और छवि को हटाया गया। छवि ने मामले में कोई टिप्पणी नहीं की है।
इधर, नसबंदी आदेश को लेकर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस मामले में मुख्य सचिव मोहंती से बात की। इसके बाद आदेश वापस ले लिया गया। प्रभारी मिशन संचालक जे विजय कुमार ने प्रमुख सचिव पल्लवी जैन गोविल के निर्देशों का हवाला देकर वापसी के आदेश जारी कर दिए।
कांग्रेस-भाजपा आमने-सामने
- सरकार मंशा क्या है... कांग्रेस सरकार की मंशा क्या है? पुरुषों की जबरन नसबंदी करवाना गलत है। सरकारी कर्मचारी को सजा देकर सरकार किसे बचा रही है? - वीडी शर्मा, प्रदेश अध्यक्ष भाजपा
- दंड का प्रावधान नहीं... नसबंदी कार्य हर साल होता है, लेकिन किसी तरह का लक्ष्य तय नहीं होता। लक्ष्य पूरा नहीं करने वाले कर्मचारी को दंड करने का भी प्रावधान नहीं है। - नरेंद्र सलूजा, कांग्रेस
यह था विवादित आदेश 20 फरवरी तक हर एमपीडब्ल्यू को करानी थी 5 से 10 की नसबंदी
विवादित आदेश में जिलाें के एमपीडब्ल्यू से कहा गया था कि वे 5 से 10 पुरुषों काे नसबंदी के लिए तैयार करें। टारगेट पूरा नहीं होगा तो वेतन ‘नो वर्क-नो पे’ के आधार पर रोकेंगे। 20 फरवरी तक स्थिति में सुधार कर लें। जो ऐसा न करे, उसे आवश्यक सेवानिवृत्ति दे दी जाए।